भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

घास / समुद्र पर हो रही है बारिश / नरेश सक्सेना

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:12, 9 जून 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नरेश सक्सेना |संग्रह=समुद्र पर हो रही है बारिश / नरेश स...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

वही जो घोड़े की नसों में ख़ून बनकर दौड़ती है

जो गाय के थनों में दूध बनकर फूटती है

वही

जो बिछी रहती है धरती पर

और कुचली जाती रहती है लगातार

कि अचानक एक दिन

महल की मीनारों और क़िले की दीवारों पर

शान से खड़ी हो जाती है

उन्हें ध्वस्त करने की शुरूआत करती हुई