भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मान / कुंजन आचार्य
Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:03, 27 जून 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कुंजन आचार्य |अनुवादक= |संग्रह=था...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
धन सूं मोटो मान घणो
मान मले थां अस्यो बणो
मान बढ़ावै इण धरती रो
माई अस्या पूत जणो।
मान पागड़, मान मूंछड़ो
मान थारी जय होएगी।
राजस्थानी रीत प्रीत री
प्रीत मान री भाईली।
मान बढै तो प्रीत बढै है
दोन्यूं एक री जाईली।
मान जीत है, मान गीत है
मान थारी जय होएगी।
मंगरा-मंगरा घणा छड्या पण
पगड़ी जंडी परी उड़ी।
धन ही जोड़यो मान थे छोड़यो
अस्या मनख पे धुलो धड़ी।
मान धजा है, मान प्रजा है
मान थारी जय होएगी।