भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
ये लोग / नरेश सक्सेना
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:52, 9 जून 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नरेश सक्सेना |संग्रह=समुद्र पर हो रही है बारिश / नरेश स...)
तूफ़ान आया था
कुछ पेड़ों के पत्ते टूट गए हैं
कुछ की डालें
और कुछ तो जड़ से ही उखड़ गए हैं
इनमें से सिर्फ़
कुछ ही भाग्यशाली ऎसे बचे
जिनका यह तूफ़ान कुछ भी नहीं बिगाड़ पाया
वे लोग ठूँठ थे।