भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कागद रा टुकड़ा / धनपत स्वामी

Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:08, 27 जून 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=धनपत स्वामी |अनुवादक= |संग्रह=थार-...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

म्हारी अणपढ़ मा
जणां कणै ई घरां
म्हारै कमरै में
किणीं रद्दी कागद रो
देखती कोई टुकड़ो
उण नै साम्भ'र
ऊंचो राख देंवती।
म्हारी अबोली बेटी
अखबार रा टुकड़ा
अंवेर लेवै आज
जिण में होवै छप्योड़ो
कोई मोवणो चितराम
उण नै लखावै
सगळा चितराम
भगवान जी रा ई होवै
ओ जाण'र बा
उणां नै आदर सूं
थरप देवै
घरां बण्योड़ै
ठाकुर जी रै छोटै थान में।
म्हैं अर म्हारी जोड़ायत
घर रा बाकी भण्या-गुण्या
इण रद्दी कागदां री
ओळपंचोळी कटिंगां नै
रत्ती भर नीं समझां
नीं कदै ई
आं रो सार ई जाण्यो
म्हे तो फगत ओ ई जाणां
वेलिडिटी पार रो है सो कीं।