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गांवां री हेल्यां / मोनिका शर्मा
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गांवां मांय सूनी पड़ी हेल्यां
घणी ठाडी होय'र आपरी ठोड
ऊबी तो रैवैं
पण आं हेल्यां रो भाटो-भाटो
बरसां सूं
खोज काढतो डोलै
हेल्यां रा भींत अर आळया-दिवाळया
चौक अर गुवाड़-बाड़ां
चौबारा अर तिबारा
सगळा'ई अणगिणत
सुवाल करैं
बां मैं सूं आतो अंधारो
बीं गेलै आण-जाण आळां नैं
बूझतो रैवै अतो-पतो
बां मिनखां रो
जिका आं हेल्यां रा चौखट-चौबारां माळै
कदैई दीवा जोया करता
आंरा आंगणां मांय
च्यानणों भरता।