भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
खेजड़ी / अशोक परिहार 'उदय'
Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:19, 28 जून 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अशोक परिहार 'उदय' |अनुवादक= |संग्रह...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
सुण खेजड़ी
थूं मुरधर जाई
बैन ज्यूं लागै
जाणैं है मा जाई
अब पण दिखै
रिंध रोई में
थांरा निरा ठूंठ ई ठूंठ
स्यात भखग्यो काळ
का भखग्यो मानखो
नीं है अब
लोई सूं पाणत करणियां
कोई इमरता बाई
जिकां होम दी जूण
जाण'र थांरो महत्त
अब थूं खुद साम्भ
थांरो मरुधरी तत्त।