भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दादो करग्या / अशोक परिहार 'उदय'

Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:30, 28 जून 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अशोक परिहार 'उदय' |अनुवादक= |संग्रह...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

दादो करग्या
आंख्यां साम्हीं सौ बरस
दादै री लोथ
पड़ी है आंगणैं में
घरां मंडग्यो मेळो
लोगड़ा काढै हा
आपरै दांतां रा कटका
दे चरचा पर चरचा
अब करणां पड़सी लाडी खरचा
बां री आंख्यां में
साव दिखै हा तिरता
सीरै-पूड़ी साथै
लाडू-बूंदियां रा सुपना
पण कुण देखै
म्हारी आंख्यां में
मिटता-गळता सुपनां
जिका देख्या हा
म्हे दादै-पौतै।