भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
दस्तूर / अवधेश कुमार जायसवाल
Kavita Kosh से
Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:12, 28 जून 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अवधेश कुमार जायसवाल |अनुवादक= |सं...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
मालिक मचानी पर
कटनी हलकान
हसिया के खर-खर
रीझै छै कान।
पतिया बिछाय छै
ताकै छै घूरी
गीनै छै अटिया
बैठलोॅ मचान।
मोठका सब मोटाका केॅ
छोटका कटनिया केॅ।
तेरह ‘‘में’’ एक के
दुनिया दसतूर
तेरह ‘‘पर’’ एक कहै
ओकरोॅ दसतूर।
बोलै छै कुछ्छु तेॅ
गांठै छै रोब
हमरा देखाबै छै
लाठी केॅ खौफ।
झुकी-झुकी ठौकै छी
ओकरा सलाम
मन में गरियाबै छी
मरबे बैमान।