भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आज तुम्हारा जन्मदिवस / नामवर सिंह

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:45, 10 जून 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= नामवर सिंह }} आज तुम्हारा जन्मदिवस, यूँही यह संध्या भी...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आज तुम्हारा जन्मदिवस, यूँही यह संध्या

भी चली गई, किंतु अभागा मैं न जा सका

समुख तुम्हारे और नदी तट भटका-भटका

कभी देखता हाथ कभी लेखनी अबन्ध्या।

पार हाट, शायद मेल; रंग-रंग गुब्बारे।

उठते लघु-लघु हाथ,सीटियाँ; शिशु सजे-धजे

मचल रहे... सोचूँ कि अचानक दूर छ: बजे।

पथ, इमली में भरा व्योम,आ बैठे तारे

'सेवा उपवन',पुस्पमित्र गंधवह आ लगा

मस्तक कंकड़ भरा किसी ने ज्यों हिला दिया।

हर सुंदर को देख सोचता क्यों मिला हिया

यदि उससे वंचित रह जाता तू...?

क्षमा मत करो वत्स, आ गया दिन ही ऎसा

आँख खोलती कलियाँ भी कहती हैं पैसा।