भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मंह मंह बेल कचेलियाँ / नामवर सिंह

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:51, 10 जून 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= नामवर सिंह }} मंह-मंह बेल कचेलियाँ, माधव मास सुरभि-सुर...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मंह-मंह बेल कचेलियाँ, माधव मास

सुरभि-सुरभि से सुलग रही हर साँस

लुनित सिवान, संझाती, कुसुम उजास

ससि-पाण्डुर क्षिति में घुलता आकास

फ़ैलाए कर ज्यों वह तरु निष्पात

फैलाए बाहें ज्यों सरिता वात

फैल रहा यह मन जैसे अज्ञात

फैल रहे प्रिय, दिशि-दिशि लघु-लघु हाथ!