भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सोवां कोनी / ओम पुरोहित ‘कागद’

Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:36, 28 जून 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ओम पुरोहित ‘कागद’ |अनुवादक= |संग्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

रोवै जका
सोवै कोनीं
सोवै जका रोवै कोनीं
दुख आळी रात
कद आवै नींद
सुख आळी रात
सोवै कुण!

कुण कैवै
रात सोवण
अर
दिन जागण सारु होवै
भलै मिनखां चितारी
सोवो तो रात है
जागो तो बात है
सूत्यां कटै दिन
जकै में
भेळा होवै दिन-रात!

सूत्यां नै जगावणों पाप है
पाप्यां नै जगावणों महापाप
पण चालो
आपां जगावां सूत्यां नै
बदळां पाप पुन्न रा भेद
मिट्यां भेद आ सी नींद
जकी जगासी जगती नै!