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भूख: दो / ओम पुरोहित ‘कागद’

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भूख बसै
मा री आंख्यां
जकी
कीं नीं चावै
जगत सूं
फगत चावै
आंगणै खेलता
जायां में मिलै ओळ
उण रै बडेरां री
जाया जीवै
लाम्बी उमर
सातूं सुख भोगता!

सुख सूं सोयो सुत
उठतां ई मुळक्यो
मा री भाजगी भूख
कोसां दूर!