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भूख : छ / ओम पुरोहित ‘कागद’

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भूख अमर
निज रै मन भांवता
ओहदां री
जकी भखै
आपसरी रा
हेत-प्रीत
हक-हकूक
बिन्यां कोई चूक।

मिल्यां ओहदा
बधे भूख
धरा पार कर
आभै रे पार
तज मिनखपणों
बणनन परमेसर
मिनखां रो!