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आभो : सात / ओम पुरोहित ‘कागद’

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आभै में फिरै
गजबी बादळिया
गांणी-मांणीं
लियां पाणीं
बरसावै नीं पण छांट
ठाह नीं कांईं है आंट!
तिरसाया नीं मरै
जीव-जंत
आभै रै भरोसै
डरती-डरती
मुरधर धरती
आपरै अंतस
अंवेर लियो पाणीं
लारली बिरखा!