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कागलो / मधु आचार्य 'आशावादी'

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मुंडरै पर कागलो आयो
फेरूं बडेरां री याद आई
बां री साख
बां री रीत
बां रो प्रेम
हेत
अर खेत
जिण खातर बडेरां री जान गई
उणी खेत री
मुंडेर आयो कागलो
जद -जद बो आवै
बडेरां री याद दिरावै
हेत माथै
जाणै फावड़ो चलावै ।