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सांच रौ हामी / दीनदयाल शर्मा

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म्‍हूं
जद भी बांधू
आपरै जूतां रा
फीता
तद
पांचेक साल री
बेटी मानसी
अचाणचकी
आ ज्यै मेरै कन्नै
अर
आय'र करै
मासूम सो सुवाल
कै पापा
बजार सूं
के ल्यासो मेरै खातर

थूं बता
के ल्याऊं
पड़ूत्तर में
म्‍हूं
बीं सूं ईं करूं
सुवाल
अर लाड करतौ
बींनै
बांथां में भरल्यूं

बा कैवै
केळा, सेब, चीकू,
पपीता, अनार
अर
काळिया अंगूर भी

अनार
जरूर ल्याइयौ पापा
भूल ना जाइयौ

म्‍हूं
घणकरी बार
भूल ज्याऊं
पछै
टाळा लेंवतौ
कै' देवूं
कै दुकान बंद ही बेटा।

मेरौ पड़ूत्तर सुण'र
मानसी
चुपचाप चलीजै
बारै खेलण सारू
आपरी सहेल्यां रै कन्नै

घणकरी बार
सब्जीआळै री
दुकान माथै
म्‍हूं
जद भी रुकूं
मानसी री मांग
बार-बार गूंजै
मेरै कानां में
तद म्‍हूं
अेक-अेक चीज रौ
भाव पूछूं

दो अेक
चीज तुलवा ल्‍यूं
मैंगाई री
मार सूं
अनार
भळै रै'ज्यै

अनार
कोनी ल्याया पापा
घरां पूगतांईं
मानसी भळै पूछै

दुकान माथै
हाई नीं
म्‍हूं झट सूं
कै' दियौ

अबै तो
हिचकूं भी नीं
भानै सारू
क्यूं कै
आदत बणगी अबै

पण म्‍हूं
अेकलौ बैठ्यौ
घणी बार सोचूं
कै
अबकाळै
मानसी सारू
अनार जरूर ल्यासूं

भीतर ई भीतर
मन चूंटतौ रैवै

म्हूं
तोलतौ रैवूं
खुद नै
ताकड़ी माथै

कै
सांच रौ हामी
आखर
क्य
बोलण लागग्यौ
झूठ।