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बचाएंगे जूते / वरयाम सिंह

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जूते ही हैं जो बचाएंगे मुझे

इस टोपी से

ख़तरे में है मेरा सिर, मेरे बाल,

ख़तरे में है खोपड़ी के भीतर

बेख़बर बैठे सब विचार।


टोपी की तरह जगह बदलेंगे नहीं ये जूते

आएंगे नहीं टोपी के झाँसे में

सावधान रहेंगे

टोपी की अभिजात भाषा

और उसके अभिजात शिष्टाचार से,

उसकी कहानियों और कविताओं से

उसके इतिहास और आख्यानों से।


घिसते रहेंगे चुपचाप जूते

घिसते रहेंगे हमारी आस्थाओं की तरह, सावधान रहेंगे

खद्दर, ऊन या विचारधाराओं के

बेमेल धागों से बनी

इस टोपी से

इस टोपी की तरह की हर टोपी से।