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जीवण / दुष्यन्त जोशी
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मुळक
कदी-कदी
दीखै थारै मुंडै
अर दरद
चिपाए राखौ
टैम-बेटैम
आओ
आपां जीवण नै समझां
अर
अेकदूजै सूं
करां प्रेम।