भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बाबा नरभूपाल साहकि दुहाई / पृथ्वीनारायण शाह

Kavita Kosh से
Sirjanbindu (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:01, 6 जुलाई 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=पृथ्वीनारायण शाह |अनुवादक= |संग्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


बाबा नरभूपाल साहकि दुहाई
   (वि. सं. १८३१ पूर्व )

आज मेरा सपनामा येक चंद देष्याँ २
हातिका चाल लसक् ३ घोडाका चाल बुरुक् ३ ।।
ऐसा त खुपू सुंदरी जल जमुनाका नीर
तीर मैं कानका लोती तरक् ३ ।।
ऐसा त खुपू चूनरि पामरि फरक् ३।।
फिर तो बाजा दम् ३ ।।
फिरंगान्ते फिरंगि दल उमडि आयो चाँद सूर्य कौं चपायो
टिडि चलि मानौं लालै लाल तो वर्ण है ।।
तोप चलो तुपक चलो मेदिनी उलट परो
गोरे कैं तोडे बिना छोडी नै आषिर्मर्तो मर्नु है ।।
बाबा नरभूपाल साहकि दुहाई हुँ
तोरा नारजपुत संग्राम तैं पाछे अंगुरो भर्नेतरना ।।
सोम वंसको सरं जोर्जु पनविको चरण है ।।
साद्धारेद्धारण भै पर्वत् पहारन भै
जंगल उजारण भै पानि फिरंतन यगु नर है ।।
जाके जहाज पर जतत्तरणि भ्‌वानि
सोलै श्रृंगार … … विचित्र तंड नरहिये ।।
सिद्ध सुनो साधक सुनो सकल परम सुनो
देवीजीको वरजाको ताको कौन डर है ।।

        ‘वीरकालीन कविता’ बाट साभार