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कुछ न होगा तो भी कुछ होगा / चंद्रभूषण
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अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:33, 14 जून 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=चंद्रभूषण }} सूरज डूब जाएगा तो कुछ ही देर में चांद निकल...)
सूरज डूब जाएगा
तो कुछ ही देर में चांद निकल आएगा
और नहीं हुआ चांद
तो आसमान में तारे होंगे
अपनी दूधिया रोशनी बिखेरते हुए
और रात अंधियारी हुई बादलों भरी
तो भी हाथ-पैर की उंगलियों से टटोलते हुए
धीरे-धीरे हम रास्ता तलाश लेंगे
और टटोलने को कुछ न हुआ आसपास
तो आवाजों से एक-दूसरे की थाह लेते
एक ही दिशा में हम बढ़ते जाएंगे
और आवाज देने या सुनने वाला कोई न हुआ
तो अपने मन के मद्धिम उजास में चलेंगे
जो वापस फिर-फिर हमें राह पर लाएगा
और चलते-चलते जब इतने थक चुके होंगे कि
रास्ता रस्सी की तरह खुद को लपेटता दिखेगा-
आगे बढ़ना भी पीछे हटने जैसा हो जाएगा...
...तब कोई याद हमारे भीतर से उठती हुई आएगी
और खोई खामोशियों में गुनगुनाती हुई
हमें मंजिल तक पहुंचा जाएगी