भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ओळखांण रै ओळावै / मदन गोपाल लढ़ा

Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:06, 9 जुलाई 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मदन गोपाल लढ़ा |अनुवादक= |संग्रह=च...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बरसूं पछै
मेळै में
भायलां भेळो म्हैं
अर सहेल्यां सागै बा।

मोकळी भीड़ में
धक्का-मुक्की बिचाळै
कांई ठाह कींकर
पंदरै बरस लारै जाय'र
बा सोध लाई ओळूं
अर ओळखांण रै ओळावै
सरजीवण कर दियो-
जूनो बगत।