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तुरपाई करती लुगाई / मदन गोपाल लढ़ा

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कोई उल्का पिंड
अंतरिख में भंवतो
नीं आय जावै
धरती री फेरी में
कै अटक जावै
जूण री सांस।

आजोन-चादर रा तीणां
इत्ता चवड़ा नीं हुय जावै
कै सूक जावै-
लीली कूंपळां।

सूरज री किरणां
उजियारो पसरावतां
इत्ती आकरी नीं पड़ जावै
कै लाय लाग जावै रिंधरोही रै।

किणी दुखियारै रै
आंसुवां सूं
खारी नीं पड़ जावै
कोई नदी
कै उणरो पाणी
पीवण जोगो ई नीं रैवै।