भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बदलाव / चन्द्रप्रकाश जगप्रिय

Kavita Kosh से
Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:00, 11 जुलाई 2017 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कछुवा नें
कछुवी सें कहलकै-
रीढ़ विहिन साँप रेंगै छै
आदमी के पासोॅ में
नैतिक या आत्मिक
रीढ़ के हड्डी बचले नै
हेना रीढ़ बिना विषधर रेंगतेॅ हए
लोगोॅ सें
भरलोॅ जाय रहलोॅ छै समाज।