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कर्ण-तेसरोॅ सर्ग / रामधारी सिंह ‘काव्यतीर्थ’

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महाक्रोधी परशुरामजी
अस्त्र-शस्त्र मंतरोॅ के ज्ञाता छेलै,
ब्राह्मण छोड़ी केॅ अन्य जाति के
शस्त्र विद्या नै सिखावै छेलै।

ब्रह्मास्त्र चलावै के शिक्षा पावै के इच्छा
कर्ण के मनों में छेलै,
ब्राह्मण भेष धरी केॅ कर्ण
परशुराम के कुटी के पास पहुँचलै।

कुटी के पास पहुँचतैं कर्णें
साज समान कुटिया में देखै छेलै,
हवन कुण्ड के आग
बुझलोॅ गंध सेॅ वायु भरलोॅ छेलै।

भीनी-भीनी महक
प्राण में मादकता पहुँचावै छेलै,
सुखद आतप में बैठलोॅ मृग
अत्यधिक हरषित छेलै।

झुकलोॅ टहनी भार पर
सुखी रहलोॅ चीवर छेलै,
एक तरफ तप के साधन धरलोॅ
दोसरोॅ ओर धनुष टांगलोॅ छेलै।

आरो देखलकै वेही तरफें तूणीर
तीर बरछी भी छेलै,
तृण कुटी द्वार पर धरलोॅ
दीप्तिमान एक परशु छेलै।

मृगछाला, कुछ आसन,
अजिन-दर्भ पर श्रद्धा बढ़लै,
परशु देखी केॅ कर्णों के मनों में
कुच्छु डोॅर समैलै।

तपोभूमिया युद्ध-शिविर
समझै में नै कुच्छु आवै छेलै,
मतर बलवीर, मतिधीर कर्ण के मनों में
तनि विचार ऐलै।

जिनकोॅ ई छेकै हवन-कुंड
हुनकोॅ की है छेकै धनुष कुठार  ?
जै मुनि के छेकै स्रुवा
हुनकोॅ केना हुवेॅ ई तलवार ?

फेनु मनों में भाव उठलै
हमरा ई सब सेॅ की दरकार,
जैलेॅ यहाँ अइलोॅ छी हम्में
वैकरहेॅ लेॅ करौं नमस्कार।

विनम्र भाव सें हुनका से
शिष्य स्वीकार करैलेॅ प्रार्थना करलकै,
ब्राह्मण समझी परशुरामेें
आपनो शिष्य बनाय लेलकै।

छल सेॅ कर्णें
ब्राह्मास्त्र चलाय लेॅ सिखी लैलकै,
छल छिपलोॅ नै रहै छै,
एक न एक दिन परशुरामें पकड़िये लेलकै।

एक दिना के बात छेकै
कर्ण के जांघी पर सिर रखी केॅ
गुरुजी सुतलोॅ छेलै
कर्ण के जांघी नीचें
एक ठो काला भौंरा घुसलोॅ छेलै।

भौंरा जांघी में कांटेॅ लागलै,
कर्णों के ई कठिन परीक्षा छेलै,
असह्य पीड़ा जांघी में
आरो लहू के धार बहै छेलै।

बलवान के साथें-साथें कर्ण
अति सहनशील छेलै,
गुरुदेव के नींद नै टूटेॅ
यै लेली जाँघ केॅ हिलावै नै छेलै।

गर्म लहू धार सेॅ
परशुराम के देह जब भीगलोॅ छेलै,
तबेॅ हुनकोॅ नींद खुललै
आरो खूनधार देखने छेलै।

ई तमाशा देखी केॅ
परशुराम के मनों में संदेह होलै,
ऐसनों पीड़ा सहै के क्षमता
ब्राह्मण में कभियो नै होलै।

बोलिये पड़लै-बेटा ! सच बतावें,
कोन जात तोरोॅ छेलै,
कैन्हें कि ऐसनों पीड़ा सहै के शक्ति
क्षत्रिय में ही छेलै।

ढोल के पोल खुली गेला पर
कर्णें असली बात उगली देलकै,
नै हम्में ब्राह्मण, नै हम्में क्षत्रिय,
सूत-पुत्रा बताइये देलकै।

ई जानी के परशुराम
क्रोध सेॅ धधकेॅ लागलै,
वही घड़ी कर्णों केॅ
भयानक शाप दैयै देलकै।

तोंय तेॅ गुरु केॅ धोखा देल्हें,
सीखलोॅ विद्या याद नै रहतौं,
ऐतने नै रणभूमि में
तोरोॅ रथ के पहिया पृथ्वी में घँसी जेतौं।

गुरु के शाप सच्चा होतौं,
रणभूमि में जरूरत पड़तौं,
अर्जुन सें युद्ध करै समय में
रथ के पहिया धँसेॅ लेॅ नहियें रुकतौं।