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शाख़ों से जो तोड़ लिया फूलों का मज़ा गया / डी. एम. मिश्र

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शाख़ों से जो तोड़ लिया फूलों का मज़ा गया।
गुस्से में तो बोल दिया बातों का मज़ा गया।

चाहें जितनी हसीं रात हो, चाहे रंगरंगीली,
रूठा यार न माने तो रातों का मज़ा गया।

मधुर-मधुर ख़्वाबों में मैंने क्या-क्या देखा था,
आँख खुली मीठे-मीठे सपनों का मज़ा गया।

वक़्त़ के नाज़ुक पंखों को जब छुओ तो हल्के से,
नर्म-नर्म एहसास न हो गीतों का मज़ा गया।

प्यार के आगे हर दौलत मिट्टी-सी लगती है,
प्यार न हो तो कई-कई जन्मों का मज़ा गया।