भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

राजधानी में बैल 3 / उदय प्रकाश

Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 05:28, 16 जून 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= उदय प्रकाश }} सूर्य सबसे पहले बैल के सींग पर उतरा फिर ट...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सूर्य सबसे पहले बैल के सींग पर उतरा

फिर टिका कुछ देर चमकता हुआ

हल की नोक पर


घास के नीचे की मिट्टी पलटता हुआ सूर्य

बार-बार दिख जाता था

झलक के साथ

जब-जब फाल ऊपर उठते थे


इस फसल के अन्न में

होगा

धूप जैसा आटा

बादल जैसा भात

हमारे घर के कुठिला में

इस साल

कभी न होगी रात ।