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आज देखी है तुम्हारी उस हँसी को / अमरेन्द्र
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आज देखी है तुम्हारी उस हँसी को
छोड़ आया मन तुम्हारे ही अधर पर।
भीष्म मन था, आत्मा वैरागिनी थी
प्रीत-मेरे सामने अपराधिनी थी
दृष्टि का विक्षेप, कम्पित मूक वाचन
मैंने कब समझा इन्हें था पुण्य-पावन
जब तुम्हारे हास के शत वाण छूटे
मैं पराजित हो गया तत्क्षण समर पर।
मन हुआ मुरली, सुहागिन आत्मा है
प्रीत मेरे पाप को करती क्षमा है
दृष्टि चंचल, तन प्रकम्पित, स्वर ये विह्वल
जैसेµसब आराधना के पुष्प शतदल
तुम हँसी तो शिशिर पर मधुमास सोया
पंचवाणों को कोई साधे शिखर पर।