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कभी इस जा / जाबिर हुसेन
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गली-कूचे में
खेतों में, पहाड़ों में
गुफ़ा में, जंगलों में
नदी में, आबशारों में
फ़िज़ाओं में, ख़ला में
इकहरी धूप में
ठंडी हवा में
घने कुहरे में
रौशन
आग की लौ में
सुनहरी घास में
रेतीली ज़मीं में
चांद जैसे आसमाँ में
किसी आबाद बस्ती में
किसी उजड़े मकाँ में
दुआ-ए-नीम शब में
बद-दुआ में
कभी इस जा
कभी उस जा
बहुत ढूंढा किए
उस बे-अमाँ को
ख़ुदा मालूम
कैसी बेख़ुदी थी
कैसी आशुफ़्ता-सरी थी
बहुत ढूंढा किए
उस मेहरबाँ को
कर्ब-ए-जाँ को