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कुछ धुआँ, कुछ आग बनने दीजिए / डी. एम. मिश्र
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कुछ धुआँ, कुछ आग बनने दीजिए।
प्यार का तूफ़ान थमने दीजिए।
पाँव रखने में अगर मुश्किल कोई,
तेा किनारा और कटने दीजिए।
ख़ुदबख़ुद आ जायगा सच सामने,
बर्फ़ को थेाड़ी पिघलने दीजिए।
फिर ज़रूरत के नये आयाम हों,
फिर खुशी को दर्द बनने दीजिए।
ये हवेली से बना खँडहर बसे,
पंछियों को नीड़ बुनने दीजिए।