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आज मुझको छल गया विश्वास मेरा / अमरेन्द्र

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आज मुझको छल गया विश्वास मेरा
जिन्दगी फिर कर गई उपहास मेरा।

पाँवों के नीचे पड़ा था मेघ
और सर पर बादलों की छाँव
मुट्ठियों में फूल सपनों के
और आँखों में सुबह का गाँव
सबके सब मिटते रहे, जाते रहे हैं
इस तरह कि रो पड़ा इतिहास मेरा।

स्वप्न के तारों को पग मेडाल
चाँद, सुख का जागता, निशि-काल
चाँदनी के रास-उत्सव में
प्राणों की मधुमय चपल वह चाल
मैं जिसे हाथों में ले पुलकित बहुत था
छूट कर वह गिर गया आकाश मेरा।

अब तो पैरों के तले है आग
और सर पर जेठ की है ताप
मुट्ठियों में नागफनियाँ कैद
और मन पर गेहुँअन की छाप
सो गया जबसे तुम्हारा प्यार कोमल
जागता है रात दिन सन्यास मेरा।