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तेरी जब तस्वीर कभी / अमरेन्द्र

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तेरी जब तस्वीर कभी, मेरी आँखों में आई
लगा कहीं से आई चलकर, पास मेरे पुरवाई।

रोम-रोम अक्षत बन बैठा, साँसे धुमना-धूप
देह हुई कंचन-सिंहासन, बैठा मन का भूप
प्रीत, हाथ में चँवर लिए है, देख रही ललचाई।

आँखों में है झील, झील पर चाँद उतर हो आया
या कोई गन्धर्व राग में अमर गीत हो गाया
तार-तार ऐसा झंकृत हैं, लय-गति सब पगलाई।

देखे न तस्वीर कोई, मन में चुपके से धर लूँ
जैसे दुलहिन रखे विहौती, वैसा ही कुछ कर लूँ
इस ऋतु का विश्वास नहीं है, चुरा न ले हरजाई।