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लग जाए न कोई कलंक / तुलसी पिल्लई
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मेरे पास
तुम्हारे लिए कुछ भी नहीं है
तुमने मुझे प्रेम के रूप में
अपना विरह दिया
और मैं पीने लगी
गरल आँसू ही आँसू
कहते हैं,
प्रेम तो पवित्र होता है
लेकिन तुमसे जुड़कर
मैं सारे जहाँ बदनाम हो गई
अपनी साफ
आँचल को भी
तुम्हारे लिए मैली कर गई
इसे अपना सौभाग्य
कह-कहकर
मन को तसल्ली देती हूँ
तुम्हारे प्रेम से मिली
हर ग्लानि को
धीरे-धीरे
सह लेती हूँ
मुख में
दिन-रात
आलाप,
तुम्हारा नाम जपती हूँ
इस प्रेम में
पता नहीं कैसे?
कभी नहीं थकती हूँ
इस प्रेम को
न तो जग अपनाता है
मैं कहती हूँ
मुझे तुम अपना लो
लग जाए न कोई कलंक
मेरे चरित्र पर
इस अश्लील जग से
मुझे बचा लो