भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

समझ / चन्द्रप्रकाश जगप्रिय

Kavita Kosh से
Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:56, 18 अगस्त 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=चन्द्रप्रकाश जगप्रिय |अनुवादक= |स...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बगुला नें
बगुलनी सें कहलकै
हम्में नदी किनारोॅ पर छेलियै
वही समय ऐगो मुरदा बैह के
वैठां आय गेलै
देखैत-देखैत मछली सिनी मरेॅ लागलै
जीव-जंतु भी अकुलावेॅ लागलै
तबेॅ हम्में समझी गेलियै कि
मरला के बाद भी आदमी के देह में
जहर बैच गेल रहै।