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दो आवाजें / मोहन राणा
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यह रक्त रंजित हाथ
खिड़की पर छाप जिसकी
यह ख़ुशी जिसकी
यह चीख़ जिसकी
यह मृत्यु किसकी
एक साथ बोल पड़ती है दो आवाज़े
मेरे भीतर से जैसे मेरे ही विरोध में
अपना कहती हुई