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खेत-खार हवे सुख्खा भांठा / प्रमोद सोनवानी 'पुष्प'
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करिया बदरा आकाध म संगी,
आपन मन के आथे।
भुईंयाँ हमर उजर गीस काय,
ओखर बर भाग जाथे।
बड़ दिन ले ऐ खेल देख के,
मोर मन हर डराथे।
खेत-खार हवे सुख्खा भांठा,
मोला रोना आथे।