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पेइचिंग : कुछ कविताएँ-1 / सुधीर सक्सेना

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तमतमाए हुए

किसी मंगोल चेहरे-सा

दीखता है सूरज

पेइचिंग में


धरती की ओर

ताने हुए नेज़े की नोंक


सुबह के नाश्ते पर

तरो-ताज़ा लाल सुर्ख़


दोपहर स्ट्राहैट पहने

धान रोपता हुआ पानी भरे खेत में


सांझ पासे खेलता हुआ

फुटपाथ पर कमीज़ कंधों पर डाले


पेइचिंग में

कभी-कभी ’शीग्वा’ की तरह

नज़र आता है सूरज--

लाल-लाल, नरम, रसभरा और गूदेदार।


शीग्वा= तरबूज़