चार कविताएँ / वेरा पावलोवा / मणिमोहन मेहता
1
एक जानवर सर्दियों में
एक पौधा वसन्त में
एक कीड़ा ग्रीष्म में
एक चिड़िया पतझर में
बाक़ी समय
मैं एक स्त्री हूँ।
2
तुमसे दूर रहते हुए मुझे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ेगा।
दरअसल यह कोई समस्या नहीं।
एक सिगरेट लेने तुम बाहर निकलोगे
और वापसी पर महसूस करोगे
मैं बूढ़ी हो चुकी हूँ।
हे ईश्वर, कितना दयनीय,
थका देने वाला मूक अभिनय है!
अँधेरे में लाइटर की एक क्लिक,
एक कश, और मुझसे प्रेम करना ख़त्म।
3
एक लड़की सोती है जैसे
वह किसी ख़्वाब में है;
एक स्त्री सोती है जैसे
कल कोई युद्ध शुरू होने वाला है;
एक बूढ़ी स्त्री सोती है जैसे
बहुत हुआ मरते हुए का अभिनय
और मृत्यु उसके क़रीब से गुज़र जाएगी
दूर कहीं नींद की सरहद से।
4
सात बजते ही,
यह रात उतर आती है।
इस सन्नाटे के भीतर
मैं एक किताब में डूबी हूँ।
एक ज़र्द पत्ता उड़ता हुए भीतर आया है
शरण मांगते हुए।
पाठ की पृष्ठ स्मृति (बुक मार्क) के लिए
रखो इस नाज़ायज़ पत्ते को।
किताब, अब कहो, आगे क्या?
एक उपसंहार, संक्षिप्त सा।
अँग्रेज़ी से अनुवाद : मणिमोहन मेहता