भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
चोर / मारिन सोरस्क्यू / मणि मोहन मेहता
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:33, 25 अगस्त 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मारिन सोरस्क्यू |अनुवादक=मणि मोह...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
अपनी एक कविता ने रात भर जगाए रखा मुझे
इसलिए मैंने भेज दिया उसे गाँव
अपने एक दादा जी के पास।
इसके बाद मैंने दूसरी कविता लिखी
और भेज दिया माँ के पास
अपने भण्डार घर में रखने के लिए।
इसके बाद भी ढेर कविताएँ लिखीं
और एक सन्देह के साथ उन्हें सौंप दिया रिश्तेदारों को
जिन्होंने सम्भाल कर रखने का वादा किया।
और यह सिलसिला चलता रहा,
हर नई कविता के लिए
था वहाँ कोई न कोई ...
दोस्त थे,
दोस्तों के भी दोस्त थे,
और अब तो मुझे याद भी नहीं
कि कहां होंगी कविता की पंक्तियाँ ...
यदि कहीं फँस जाऊँ चोरों के बीच
और वे मुझे प्रताड़ित करें
तो ज़्यादा से ज़्यादा
यही कहूँगा
कि मेरी तमाम संदिग्ध चीज़ें,
इसी मुल्क में कहीं हैं
और सुरक्षित हैं।
अँग्रेज़ी से अनुवाद : मणिमोहन मेहता’