भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हिंस्र बाज की आँखों में झाँको / सुधीर सक्सेना

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 02:13, 18 जून 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुधीर सक्सेना |संग्रह=समरकंद में बाबर / सुधीर सक्सेना }...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

झाँको

हिंस्र बाज की आँखों में झाँको

इतिहास घायल है वहाँ

कपोत की तरह।


नरमुण्डों के स्तूप हैं वहाँ,

आँखों की पुतली के एक कोने में

टंगा है माईलाई का फ़ोटो

और दूसरे कोने में हिबाकुशा का क्लोज़अप

रिस रहा है बाज की आँखों की कोरों में

तेल के कुओं का धुआँ


थोड़ा और गौर से

झाँको बाज की आँखों में

उसकी आँखों में

किरकिरी-सी चुभ रही है

लम्बी दीवार की ईंटें,

उसकी आँखॊं में

मिरची-सा लगता है

हवाना के सिगार का धुआँ।