भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अंतहीन / अर्चना कुमारी
Kavita Kosh से
Anupama Pathak (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:34, 26 अगस्त 2017 का अवतरण
डूबते सूरज संग
लम्बी होती परछाइयों का जन्म
ये थोड़ा कठिन समय होता है
परिस्थिति और समय की सापेक्षता का
अंधेरे की स्वीकार्यता
दिन के नाम विद्रोह नहीं लिखती
प्रतीक्षा की अन्तहीनता
साँझ के दीपक
और भोर की प्रार्थना को सौंप दी
आहटों की ऊँगलियाँ
पाँव गुदगुदाती हैं
मन को भरमाती हैं
मैं झाँक लेती हूँ उचक कर दरवाजा
कोई चिठ्ठी नहीं आती
मेरे पते पर
लोग लिखना भूल गये
डाकिए राह तकते हैं लिफाफों की महक का
वर्तमान की नीरसता
इतिहास की नीरवता में ढल कर
तन लाल, मन श्वेत
पथ केसरिया, यात्राओं के
किसी दिन
पोर-पोर हिना होगी
सांस-सांस मुक्ति
टूटने-पीसने के बाद
शाखों से