भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बंद हो रास्ते / अर्चना कुमारी

Kavita Kosh से
Anupama Pathak (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:35, 27 अगस्त 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अर्चना कुमारी |अनुवादक= |संग्रह=प...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

गली जहां ख़त्म होती है
ठीक उसे बंद करते हुए
एक घर हो मेरा
जहां से आगे जाने का रास्ता न हो
तुम लौटो वहां से अगर
तो उम्र भर टंगी रहे
तुम्हारी पीठ पर
मेरे घर की आंखें
कि चुभन से तंग आकर
रुख मोड़ लो आखिरी बार
उस घर की तरफ
जहां से बंद हो जाए
लौटने के भी रास्ते।