भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
क्या जानूं मैं / अर्चना कुमारी
Kavita Kosh से
Anupama Pathak (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:41, 27 अगस्त 2017 का अवतरण
एक रात के गहरे पहलू में
एक मासूम कली का मुस्काना
कि खींच के आंचल का कोना
जोर जोर हंसते जाना
या जानोगे दुनिया वाले
फिर से बचा बन जाना
कि उम्र की ऊंची चौखट पर
भूल गये बचपन
कोरे कोरे सावन की
हरी चूडिय़ां
भरे जेठ की पहली बूंद
सौंधी धरती
कोयल कूके बाग-बाग...सुर मीठे
नयी नवेली दुल्हनियां
पायल की छनछन
कौन जाने...किस विधि से रीझते प्रीत नयन
कैसे बांधू चंचल मन
उतान तरंगों के राजा
कैसे बिंधूं मन चितवन
हुं सजल चपल अल्हड़ वन्या
सीधी सी भोली कन्या
या जानू कैसे मान धरूं
न जानूं कैसे प्रिय कहूं!