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तारों का नूर लेकर ये रात ढल रही ह / देवी नागरानी

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तारों का नूर लेकर ये रात ढल रही है
दम तोड़ती हुई इक शम्अ जल रही है

नींदों की ख्वाहिशों में रातें गुज़ारती हूं
सपनों की आस अब तक दिल में ही पल रही है

ऐसे न डूबते हम पहले जो थाम लेते
मौजों की गोद में अब कश्ती संभल रही है

तुम जब जुदा हुए तो सब कुछ उजड़ गया था
तुम आ गए तो दुनियां करवट बदल रही है

इस जिंदगी में रौनक कम तो नहीं है ‘देवी’
बस इक तेरी कमी ही दिन रात खल रही है