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चाँदनी गुनगुनाती रही रातभर / कल्पना 'मनोरमा'

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चाँदनी गुनगुनाती रही रातभर।
यामिनी कसमसाती रही रातभर।

तारकों से झगड़ती रही कालिमा,
भोर का डर दिखाती रही रातभर।

दीप गिनता रहा तंग परछाइयाँ
वर्तिका टिमटिमाती रही रातभर।

करवटें साँस लेती रहीं दर्द में ,
जिन्दगी थरथराती रही रातभर।

भूख करती रही बेरहम रतजगा ,
अस्थियाँ चरमारातीं रहीं रातभर|

कर्म के फ़लसफ़े की इबारत तने,
‘कल्प’ मन को मनाती रही रातभर।