भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बादियों में प्यार कोई बो गया / कल्पना 'मनोरमा'
Kavita Kosh से
Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:24, 9 सितम्बर 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कल्पना 'मनोरमा' |अनुवादक= |संग्रह= }}...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
बादियों में प्यार कोई बो गया।
जो यहाँ आया यहीं का हो गया।
छोड़कर जाना ग़वारा था नहीं,
एक भौंरा गोद ही में सो गया।
दीप खुशियों की चुहल करने लगे
लौटने पाया नहीं तम, जो गया।
डोलती फिरती हवा मनुहार में
रूठकर मकरंद देखो वो गया।
रात को चुपचाप आकर ओस से,
प्रात से पहले काई मुँह धो गया।
कौन रागी छेड़ता है रागिनी,
झूमती कलियाँ कहाँ मन खो गया।
नाद अनहद साधना में डूबकर
कल्प युग भी,एक पल का हो गया।