भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
चिन्मय भोर / कल्पना 'मनोरमा'
Kavita Kosh से
Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:33, 9 सितम्बर 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कल्पना 'मनोरमा' |अनुवादक= |संग्रह= }...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
ढूंढ लायें क्यारियों से
एक चिन्मय भोर
फिर बाँटें उजाले।
चिमनियों ने छितिज से
शबनम चुराई रात रोई
बुलबुलों ने कंठ मे सरगम
छिपाई,बात खोई
माँग लें व्यापारियों से
एक विनिमय भोर
फिर बाँटें उजाले।
सीपियों के पेट खारा जल
बने मोती कहाँ से
ज्ञान की जलती अँगीठी,
पर सिंकें रोती कहाँ से
विहग कलरव में मचलती
एक तन्मय भोर लें,
बाँटे उजाले।