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एक जलते हुए शहर की यात्रा / विमल कुमार

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इस जलते हुए और शीशे की तरह रोज़ थोड़ा पिघलते हुए
इस मरते हुए और मरने से पहले थोड़ा पानी माँगते हुए शहर में
आपका स्वागत है।

किस तरह नुचे हैं तितलियों के पंख यहाँ
किस क़दर कुचली गई है घास पार्कों में
किस तरह ढहाई गई है दीवार
किस क़दर लगाई गई है आग
लूटा गया है यहाँ किस तरह सबका विश्वास
चीख़ते हुए पेड़ों और रोती हुई नदियों वाले शहर में
आपका स्वागत है।

कितनी अच्छी बात है
आप टूटे हुए सपने देखने आए हैं
मासूम बच्चों के आँसू पोंछने आए हैं
विलाप करती स्त्रियों को चुप कराने आए हैं
इस कत्लगाह में लाशों पर फूल खिलाने आए हैं
कौन आता था इस शहर में अब तक
कोई भी तो नहीं
कोई सैलानी
कोई फ़कीर
यही क्या कम है कि आप कम से कम राख के ढेर देखेंगे
उठती हुई लपटें और चिंगारियाँ देखेंगे
बेजुबान गलियों और घायल सड़कों की खामोशियाँ देखेंगे
मण्डराते गिद्धों और मकानों पर बैठी चीलों वाले शहर में
आपका स्वागत है।

इस आधुनिक समय में
आप गहरी असुरक्षा और अनिश्चित भविष्य देखने आए हैं
क्योंकि यह सब भी अब देखने की चीज़ें हो गए हैं
सीने के अन्दर गहरे ज़ख्मों
और ज़ख्मों पर छिड़़के नमक देखने आए हैं
हमें मालूम है आप किसी की आँखों में चमक देखने आए हैं
आपका स्वागत है।