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किसी का यूं तो हुआ कौन उम्र भर फिर भी / फ़िराक़ गोरखपुरी

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किसी का यूं तो हुआ कौन उम्र भर फिर भी ये हुस्न-ओ-इश्क़ तो धोका है सब, मगर फिर भी

हजार बार ज़माना इधर से गुजरा नई नई है मगर कुछ तेरी रहगुज़र फिर भी

खुशा इशारा-ए-पैहम, जेह-ए-सुकूत नज़र दराज़ होके फ़साना है मुख्तसर फिर भी

झपक रही हैं ज़मान-ओ-मकाँ की भी आँखें मगर है काफ्ला आमादा-ए-सफर फिर भी

पलट रहे हैं गरीबुल वतन, पलटना था वोः कूचा रूकश-ए-जन्नत हो, घर है घर, फिर भी

तेरी निगाह से बचने मैं उम्र गुजरी है उतर गया रग-ए-जान मैं ये नश्तर फिर भी