भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
दोसरोॅ सच-2 / चन्द्रप्रकाश जगप्रिय
Kavita Kosh से
Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:06, 9 सितम्बर 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=चन्द्रप्रकाश जगप्रिय |अनुवादक= |स...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
गिलहरी नें
गिलहरनीं सें कहलकै
जंगल सें गुजरैत आदमी
बैच के निकैल जाय छै
हिंसक जानवर के
घात लगैला सें भी
मुदा आदमी के घात सें
नै बैच पारै छै आदमी।