भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बोध / चन्द्रप्रकाश जगप्रिय

Kavita Kosh से
Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:08, 9 सितम्बर 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=चन्द्रप्रकाश जगप्रिय |अनुवादक= |स...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मोर नें
मोरनी सें कहलकै
जै देश में न्याय बिकै छै
बिक जाय छै पंचशाला जीव
जहाँ दोपहरिया में लूट जाय छै महिला
वैं देश के राष्ट्रीय पक्षी होय पर
हमरा शर्म आवै छै
आदमी के आवै कि नै।